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Friday, January 23, 2015

TIPS FOR HAPPY AND SENSIBLE LIFE STYLE***खुशहाल और दिव्य जीवन की और



वास्तविक कमाई***REAL EARNING

1. जीवन  में  कोई  भी  कार्य  करते  समय  हमारी  मानसिकता 
    यह  कभी नहीं  होनी चाहिये जिससे  किसी  दूसरे  का  तनिक
    भी  अहित  हो ***   
     

 2. जिस तरह का व्यवहार हमें खुद को पसंद ना हो उस तरह का 
     व्यवहार किसी दूसरे के साथ भी ना करें यही इंसानी धर्म है*** 



3. इस दुनिया में जो भी पैदा होता है वो अपना भाग्य साथ ले कर 
    पैदा होता है और अगर हम ऐसा सोचें की हम किसी को कुछ दे 
    रहें हैं अथवा किसी की मदद कर के उस पर अहसान कर रहें हैं 
    तो ऐसा सोच कर हम बहुत बड़ी गलती कर रहे होते हैं क्योंकि 
    उस वक़्त सामने वाले का भाग्य हमारे द्वारा कुछ न कुछ उस 
    के लिए करवा रहा होता है,और यह एक अटल सत्य है*** 



 4. अगर हम जिन्दगी में पूरी ईमानदारी से काम करते हैं तो उस वक़्त 
     देश ,दुनिया व् समाज का भला तो हो ही रहा होता है,पर सब से 
    ज्यादा भला किसी का हो रहा होता है तो वो स्वयं का हो रहा होता 
    है,क्योंकि जब हम पूरी ईमानदारी से जिन्दगी का निर्वाह कर रहें 
    होतें हैं ,तो उस वक़्त हमारे भीतर कैसी दिव्य ऊर्जा और तेज का
    का संचार होता है जिस को हम किसी के आगे अपनी जुबान से 
    व्यान नही कर सकते| और यह भी एक अटल सत्य है की एक 
    ईमानदार इंसान के सामने असत्य अपने -आप निस्तेज हो जाता 
    है***                   

5. आज जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत है,वो है प्यार और भाईचारे से 
    मिलजुल कर इकट्ठे रहने की अगर हम ऐसा करने में पूरी तरह से 
    कामजाब हो जातें हैं,तो फिर हमें यह संशय नहीं करना चाहिये की 
    हम इस पूरी दुनिया से सामाजिक ,आर्थिक,मानसिक और कई भी 
   तरह की अपराधिक विरितियों को दूर नहीं कर सकते,क्योंकि आपसी  
    प्रेम और प्रगाढ़ भाईचारा ही ऐसी रामबाण औषधी है ,जिस से कुछ 
    भी असम्भव नहीं***          


6. अगर हम चाहते हैं की जिन्दगी में कोई हमारा आसरा बने या हमारा 
    कोई साथ दे तो हमें भी किसी को आसरा अथवा किसी को साथ देना 
    चाहीए,अगर हम ऐसा नहीं करते तो फिर हमारा किसी दुसरे से ऎसी 
    अपेक्षा करना व्यर्थ है।


7. अगर हमारे मन में ऐसी भावना हो की कोई हमें हमेशा याद रखे 
    अथवा याद करे तो फिर एक पवित्र भावना हमारे मन में यह भी 
    होनी चाहीए की अगर हमें दुनिया में याद किया जाये तो वो सिर्फ़ 
    हमारे नेक और भले कर्मो के लिए याद किया जाये न की हमारे बुरे 
    कुकर्मों के लिए याद किया जाये। 
 
  



    
    


     








 

















सुसंस्कार कब से------?


               सुसंस्कार  कब  से------?

                       
  अब हम बात अथवा विचार इस विषय पर करते हैं,कि हम सब 
को अपने जीवन में सुसंस्कारों को कब और किस समय स्थान 
देना चाहिये,अगर हम इस के समय की सीमा बाँधे तो फिर यह 
एक हास्यास्पद अथवा वयंगात्मक बात होगी,पर इस प्रश्न के 
जवाब से पहले हमें निम्नांकित कुछ महत्बपूर्ण प्रश्नों के जवाब 
ढूंढने अथवा देने होंगे :-

1.जब कोई भी जीव दुनिया में जन्म लेता है तब उसे कब साँस 

   लेना शुरू करना चाहिये------?   ज़वाब मिलेगा ------शुरू से  

2.जब हम कोई गाड़ी खरीदें तो कोई हम से पूछे की भाई साहेब 

   अगर आप को यह गाड़ी चलानी हो तो आप इस में पेट्रोल कब 
   डालेंगे तो ------?                      ज़वाब मिलेगा ------शुरू से

3.जब कोई हम से पूछे की अगर हम को अपने बच्चों को डॉक्टर 

   अथवा इंजीनियर बनाना तो हम को अपने बच्चों को कब शिक्षा 
   देना प्रारम्भ करना चाहिये------?ज़वाब मिलेगा ------शुरू से 

4.जब कोई किसान अपने खेत में बीज बोय तो उस से कोई पूछे 

   की वो कब बीज को पानी देगा ----?ज़वाब मिलेगा ------शुरू से

   इसी प्रकार जब हम यह बात करें की हमें अपने बच्चों में अथवा 

   अपने स्वयं के जीवन में सुसंस्कारों को कब स्थान देना चाहिये       
   अथवा किस समय से हमें सुसंस्कारों को अपने जीवन में भर 
   लेना चाहिये तो इस बात पर भी हमारे मन में कोई भेद नही 
   होना चाहिये,कि हमें इस बात का जवाब देने के लिए सोचना 
   पड़े,अगर हमें अपने बच्चों के भविष्य को सही रूप में सवारना 
   हो तो हमें शुरू से ही सुसंस्कारों को अपने बच्चों के भीतर भर 
   देना चाहिये,ताकि आने वाले समय में हमारे बच्चे सारी दुनिया 
   का नेतृत्व करने के लिए सक्षम हों। और यह हमारी एक नैतिक 
   जिम्मेबारी भी बनती है ,आज सारी दुनिया में हम को जो भी 
   असमानताएं , अपराध अथवा कोई भी कुरीतियां नज़र आ रही 
   हैं उनका बस एक ही कारण है और वो है हम सब में सुसंस्कारों
   की कमी ,जो आज की एक गम्भीर समस्या है ,और इस का एक 
   ही उपाय है वो यह की हम सब में शुरू से ही सुसंस्कारों का होना 
   अति जरूरी है ,जिस से सारी दुनिया में स्वर्ग सा माहौल बन सके,
   और हमारी नई पीढ़ियाँ एक सुदृढ सम्राज्य और प्यार भरे माहौल
   में फलें-फूलें । 


{नोट :-आओ हम सभी छोटे-छोटे और प्यार भरे सुसंस्कारों को अपने 

           सभी बच्चों में भरें और उनको और उनके भविष्य को सुरक्षित
           करें,यह आज एक अत्यंत गम्भीर विषय है अता:इस गम्भीरता 
           को समझने की कोशिश करें -------------धन्यवाद!!!   





 










Thursday, January 22, 2015

कैसी होती है हमारी प्यारी माँ ( उद्गार)



कैसी होती  है हमारी प्यारी माँ 
        जब भी हम रोते तो हँसाती हमारी माँ 
खुद गीले पर सोती अपनी माँ 
      सूखे पर सुलाती हमें हमारी  माँ 
जब हमारा कोई नही बनता 
        उस वक़्त बनती है हमारी माँ 
काँटे देती है दुनिया हमें सदा 
       फूलों पर सुलाती सदा हमारी माँ 
गमों से घिरे रहते हैं हम सदा 
       खुशियों से लपेटे रखती सदा हमारी  माँ 
दुनिया देती है जगह हमें इधर -उधर 
       दिल में रखती है सदा हमें हमारी माँ 
ख्याल सदा नहीं रखता कोई हमारा 
       देखभाल सदा रखती है हमारी माँ 
सब कहते हैं स्वर्ग दुनिया का है और कहीं 
      पर स्वर्ग देती है अपने ही चरणों हमारी माँ 
कोई कहता माँ ऐसी है कोई कहता वैसी है 
     पर परिभाषा रहित होती है सदा हमारी माँ 
सहारा देतें हैं सभी सहारे वालों को 
     बेसहारों को सहारा देती है हमारी माँ 
कोई खिलायेगा इक या दो दिन हमें   
         पर अन्नपुर्णा होती है सदा हमारी माँ 
हम रोतें रहें सदा परवाह है किसे 
         पल में  ही रो देती है हमारे लिए हमारी माँ  
करो कुछ भी खुश होता नहीं कोई सदा 
       खुशहाल हो जाये छोटी सी मुस्कान से हमारी माँ 
हम रहें किसी भी हाल में परवाह न करे कोई 
       पर जुदा इक पल भी न हो हम से हमारी माँ 
सब कहें हमारा खुदा कहीं और है 
       पर हमारा खुदा हमारे घर में है हमारी माँ 
चलें हमेशा उन्हीं राहों पर 
      जिस पर चलने को कहे हमारी प्यारी माँ 
दुनिया तो सदा डाले हमें उलटी राहों पे 
     पर रास्ता सीधा दिखाती सदा हमारी माँ 
सब धकेलें हमें सदा अंधेरों में 
     अंधेरों में भी रोशनी दिखाये हमारी माँ 
हों नतमस्तक सदा माँ के श्री चरणों में 
      खुदा भी खुश होते सदा अगर खुश हो हमारी माँ 
झोली भरो अपनी माँ के आशीषों से सदा 
      खुशियाँ मुड़ -मुड़ के आएँगी तुम्हारे दामन में 
माँ लेती नहीं कुछ देती है सदा -सदा 
      अरे माँ होती है ऐसी जिस के चरणों खुद झुके खुदा  
                                                             खुद झुके खुदा 
                                                                खुद झुके खुदा । 

                                                                               {माँ के श्री चरणों में वन्दन}     



















Monday, January 19, 2015

सुसंस्कारिता

                                        सुसंस्कार 

जब हम सुसंस्कार शब्द के बारे में बोलते हैं या सुनते हैं 
तो हम सभी मन ही मन अपने भीतर सावधान होने के 
लिए प्रेरित होने जैसा महसूस करते हैं और फिर अच्छा 
भी लगता है। सुसंस्कार शब्द के  अर्थ  की  गहराई को  
परिभाषित करने की चेष्टा करें तो छोटा मुहं बड़ी बात 
वाली कहावत होगी,क्योंकि सुसंस्कार शब्द अपने आप 
में एक व्यापक अर्थ को अपने भीतर समाये हुए है,अगर 
हम सब इसका मतलब समझने की कोशिश करें तो बस 
यही समझ आता है,कि जैसे सुसंस्कार शब्द हमें अपनी 
-अपनी मर्यादा और शिष्टाचार भरे जीवन शैली की और 
प्रेरित कर रहा हो। हम ज्युँ  कहे तो सुसंस्कार शब्द हमारे 
मन के भीतर बैठे अध्यापक जैसा ही है,जो हमें अपने 
जीवन को सुव्यवस्थित और श्रेष्ठ आचरण धारण करने 
के लिए प्रेरित करता रहता है।और इसी सुसंस्कार शब्द की 
प्रेरणा से हम स्वयं सुव्यवस्थित और श्रेष्ठ आचरण वाले 
होते हैं ,और अपने आने वाली पीढ़ीओं [संतानों] को  श्रेष्ठ
आचरण धारण करने के लिए प्रेरित करते हैं,और अगर हम 
मिल इस सुसंस्कार शब्द की गरिमा को बनाये रखेंगें तो 
फिर सारी दुनिया में सम्पूर्ण मानव-जाति को कुसंस्कारों,
अपराधों,अमानविय कर्मों,दंगें-फसादों और भी कई तरह की 

बुराइओं से सहजता से हि बचाया जा सकता है।  

















                 सुसंस्कार  कब  से------?

                       
   अब हम बात अथवा विचार इस विषय पर करते हैं,कि हम सब 
को अपने जीवन में सुसंस्कारों को कब और किस समय स्थान 
देना चाहिये,अगर हम इस के समय की सीमा बाँधे तो फिर यह 
एक हास्यास्पद अथवा वयंगात्मक बात होगी,पर इस प्रश्न के 
जवाब से पहले हमें निम्नांकित कुछ महत्बपूर्ण प्रश्नों के जवाब 
ढूंढने अथवा देने होंगे :-

1.जब कोई भी जीव दुनिया में जन्म लेता है तब उसे कब साँस 

   लेना शुरू करना चाहिये------?   ज़वाब मिलेगा ------शुरू से  

2.जब हम कोई गाड़ी खरीदें तो कोई हम से पूछे की भाई साहेब 

   अगर आप को यह गाड़ी चलानी हो तो आप इस में पेट्रोल कब 
   डालेंगे तो ------?                      ज़वाब मिलेगा ------शुरू से

3.जब कोई हम से पूछे की अगर हम को अपने बच्चों को डॉक्टर 

   अथवा इंजीनियर बनाना तो हम को अपने बच्चों को कब शिक्षा 
   देना प्रारम्भ करना चाहिये------?ज़वाब मिलेगा ------शुरू से 

4.जब कोई किसान अपने खेत में बीज बोय तो उस से कोई पूछे 

   की वो कब बीज को पानी देगा ----?ज़वाब मिलेगा ------शुरू से

   इसी प्रकार जब हम यह बात करें की हमें अपने बच्चों में अथवा 

   अपने स्वयं के जीवन में सुसंस्कारों को कब स्थान देना चाहिये       
   अथवा किस समय से हमें सुसंस्कारों को अपने जीवन में भर 
   लेना चाहिये तो इस बात पर भी हमारे मन में कोई भेद नही 
   होना चाहिये,कि हमें इस बात का जवाब देने के लिए सोचना 
   पड़े,अगर हमें अपने बच्चों के भविष्य को सही रूप में सवारना 
   हो तो हमें शुरू से ही सुसंस्कारों को अपने बच्चों के भीतर भर 
   देना चाहिये,ताकि आने वाले समय में हमारे बच्चे सारी दुनिया 
   का नेतृत्व करने के लिए सक्षम हों। और यह हमारी एक नैतिक 
   जिम्मेबारी भी बनती है ,आज सारी दुनिया में हम को जो भी 
   असमानताएं , अपराध अथवा कोई भी कुरीतियां नज़र आ रही 
   हैं उनका बस एक ही कारण है और वो है हम सब में सुसंस्कारों
   की कमी ,जो आज की एक गम्भीर समस्या है ,और इस का एक 
   ही उपाय है वो यह की हम सब में शुरू से ही सुसंस्कारों का होना 
   अति जरूरी है ,जिस से सारी दुनिया में स्वर्ग सा माहौल बन सके,
   और हमारी नई पीढ़ियाँ एक सुदृढ सम्राज्य और प्यार भरे माहौल
   में फलें-फूलें । 


{नोट :-आओ हम सभी छोटे-छोटे और प्यार भरे सुसंस्कारों को अपने 

           सभी बच्चों में भरें और उनको और उनके भविष्य को सुरक्षित
           करें,यह आज एक अत्यंत गम्भीर विषय है अता:इस गम्भीरता 
           को समझने की कोशिश करें -------------धन्यवाद!!!   


 











Sunday, January 18, 2015

वास्तविक प्रार्थना {REAL PRAY}

हे  इस  पुण्य  धरा  पर  रहने  वाले  इंसानो  आओ मिल 
-कर  करें  परमपिता  परमात्मा  से  ऐसी  दिव्य  सर्व - 
जनिक  प्रार्थना  जिस  से  हो  सके  विश्व  का  दिव्य                                  निर्माण-----।
1.   हे प्रभु हम से कोई भी ऐसा कार्य न हो जो हमें  तुमसे दूर करदे। 

2.  हे प्रभु हम से कोई भी ऐसा भोजन न हो जो दूसरों के हक़ का हो। 

3.  हे प्रभु हम कोई  भी ऐसा दृश्य न देखें जो दोष दृष्टि पैदा करे । 

4.  हे प्रभु हमसे कोई भी ऐसा कार्य न हो जो निंदनीय हो। 

5.  हे प्रभु किसी की ऐसी दशा न हो जो हमारी आंखों में आंसू लाये।

6.  हे प्रभु हमारे हाथ आपको पुकारने के लिये उठे न की दूसरों की इज्ज़त 

      उछालने के लिए। 

7.  हे प्रभु हमें ऐसी दिव्य दृष्टि दें कि हम जिस तरफ भी देखें आपके ही           दर्शन हों।   

8.  हे प्रभु हम जो बोले केवल  आप ही की प्रसन्नता  के  लिए  बोले । 


9.   हे प्रभु हम जिस से भी मिलें प्रभु भाव  से ही  मिलें । 


10. हे प्रभु हम से जो भी हो वो प्राणी मात्र के लिए प्रेरणा श्रोत हो जाए। 


11. हे प्रभु हम जो भी देखें वो केवल प्रभु भाव से ही देखें । 


12. हे प्रभु हमारे द्वारा आप की कुदरत में किसी भी तरह का बिगाड़ न हो। 

13. हे प्रभु हम दूसरों की उन्नति में हमेशां ही प्रसन्न चित रहें । 

14. हे प्रभु हम कभी भी दूसरों के दुःख व्  कष्टों का कारण न बनें ।


15. हे प्रभु हम पर ऐसी कृपा करना की हमारा वास केवल आप के हिर्दय           में हि हो । 

16. हे प्रभु हम धन -दौलत के नशे में अन्धें न हों ,केवल आप हि के प्रेम में 
      अन्धें में हों । 
17.हे प्रभु हम हमेशा इन्सानियत का धर्म ही निभाएं न की हैबानीयत का। 

18. हे प्रभु हम हमेशा दूसरों के कार्य सवारने के काम आएं ना दूसरों के 

      कार्य बिगाड़ने के । 
19. हे प्रभु हमारे दिल में हर एक जीव-जन्तु के प्रति दया भावना बनी रहे। 

20. हे प्रभु हमारे जीवन में हमेशा आपके दिव्य ज्ञान का प्रकाश बना रहे। 


21.  हे प्रभु हम से कोई भी ऐसे कार्य मत करवाना जिससे हम इंसानी राह 

      से भटक कर शैतानी राह की और चल दें । 

22.  हे प्रभु हम हमेशा दूसरों को सुख और चैन देने वालों की कतार में ही 

       नज़र आयें । 

23.   हे प्रभु मेरे कोई भले तेरी बनाई हुई वस्तुएं के पीछे भागे पर हे मेरे 

        मालिक मैं हमेशा तुझको  ही पाने के लिए  भागता फिरूँ।  

24.   हे प्रभु हमें कुछ भी पता नहीं की हमारे लिए क्या भला या बुरा 

        है पर आप हमें वो ही जो देना जो आपकी आपकी मर्जी के अनुकूल 

        हो ।   

Wednesday, December 31, 2014

उन्नत हों सभी {GROW EACH 'N' EVERY ONE}

                                         1
                                       ###
कार्य   वो   ही  अच्छे  जिन  से   हर   किसी   के उन्नति  और  खुशहालि   रास्ते   खुलें।   
                                        2
                                      ###


कसूरबार कुदरत या हम... . . . ???

          

                                                           हमारी प्रकृति माँ 


आज  के  दौर  में  हमारी  सब से  बड़ी  समस्या  यह  हो गई  है ,कि  हम  हर वक़्त  अशांत वातावरण से

माहौल में  अपना  जीवन  व्यतीत  कर  रहें  हैं ,जो  हमारे  वश  की  बात  नहीं  कि  हम  हर  तरफ  अपना  मन -


पसन्द  माहौल  पैदा  कर लेँ ,लेकिन इस का यह  अर्थ  नहीं  कि हम  हर  वक़्त  अशांत  ही रहें। इस  से  राहत  


पाने  के  लिए  उस   परमपिता  परमात्मा  ने   हमें   प्रकृति  माँ  के  रूप  में  बहुत  सारे  वरदान  दिये  हैं, पर


हम  आज  हम  दुनियावी  चकाचौंद  में  इतने  खो  गए  हैं ,कि  हम  सब  ऊपर -ऊपर  से  तो  बहुत  बढ़िया -


बढ़िया नज़र  आते  हैं ,और  ऐशोआराम  की  सामग्रीयों  से  अपने  आप  को  बड़ा  आरामदायक  महसूस  


करते  हैं, पर  वास्तविकता  हम सब ऊपर -ऊपर  भले  ही महसूस  ना  होने  दें अगर  हम  अपने-अपने  दिल 


पर  हाथ  रख  कर  पूछें  और  महसूस  करें ,तो  हर  किसी  के  भीतर  मन  से   एक ही  ज़बाब  आएगा  कि  


जी  हां  हम सब  थके -थके  हैं  और  भीतर  से  पूरी  तरह  खोखले  अथवा   खाली -खाली  हो  चुकें  हैं , जिस 


का  कारण  सिर्फ  एक  ही  है  कि  हम कुदरत  से   दूर -दूर  हट  के  जीने   आदि  हो  चूकें  हैं ,कोई  हम  से 


कारण   पूछे   हम   सब   के   कारण   अलग -अलग   होंगें,  जैसे   की   हम   में   से   कोई  कहता   है , कि 


क्या   करें   भई   घर   की   मज़बूरी   है ,  कोई   कहता   है   कि   हमें   क़ारोबार   की   मज़बूरी   है,  और   कोई 


तो   यह   कहने   से   भी   पीछे   नही    हटते   कि   क्या  करें   भई   अब तो  आर्टिफसिकल [बनाबटी ]  दिखाबे


का   ज़माना   है,  और   ज़माने   के   साथ   चलना   हमारी   मज़बूरी   है ,  पर   उनसे   यह   कोई नहीं कहता 


कि   नहीें   साहेब  जी   नहीं   हमारा   कुदरत   के   साथ   जुड़   कर   रहना   भी   अति   जरूरी   है,  पर   हम 


हैँ   कि   बस   यही   एक   बात   करके  अपना-अपना   दामन  झाड़   लेतें   कि   जैसा   देश -वैसा   भेष ।  पर 


तनिक   विचार   कर   के   हम   देखें   कि   जिस-जिस   देश   में   हम   रहतें   हैं,  वहाँ  सागर   और  हमारी  


 प्यारी -प्यारी   नदीयां  भी  बहती   हैँ ,  वहां   के   खेत -खलियानों   में   फसलों   और   बनस्पतियों   की 


हरियाली  भी   नज़र   आती   है,  कहीं   बड़े -बड़े   पर्वत   पहाड़ ,और   कहीं - कहीं   पर्वतों   से  ख़ूबसूरत  झरने 


बहते  नज़र   आते   हैं , और   आकाश   कि   और   चेहरा   उठा   कर   के   देखें   तो   हज़ारों   तरहं   के   पक्षी 


अपनी-अपनी   आकाश   को   छू   लेने   जैसी   उड़ान   भरते   दिखाई   देगें ,  हम   कहीं   भी   देखें   हमें 


 कुदरत  का   कोई   न   कोई   नज़ारा   जरूर   दिखाई   देगा ,  और   अगर   हम  शान्त  भाव  से  एक  दम   


एकान्त  स्थान  पर  बैठ   कर   सोचें   कि   क्या   यह  सब  परमात्मा   ने   अपने   लिए   बनायें   हैं, या   


परमात्मा   ने   अपना   गर्व  दिखाने   के   लिए   बनायें  हैं, या  हम   इस   प्रकार   समझेँ   कि   परमात्मा   हमें 


अपने   आप   को   बहुत   बड़ा   जादूगर  बन   कर  दिखाना   चाहता   है,  अरे  परमात्मा   क्या   है,यह  स्वयं 


परमात्मा   को   किसी   को   भी   बताने   की   जरूरत   नहीं   है,  परमात्मा   एक   खुली   किताब   की   तरह 


है, जिस   का   अस्तित्व   कण -कण   में   नज़र   आता   है, जरूरत   है   तो   बस  उसे   महसूस   करने   की । 


जिसने   हम   इंसानों   के   लिए   चारों   ओर   अपने   दिव्य   संकल्प   मात्र   से   हमें   अपनी   कुदरत   के 


ख़ज़ानों  और   नज़ारों   से   मालामाल   किया   हुआ   है ,और   वो   चाहता   है  कि   मेरे   यह  बच्चे   सदा   


खुशहाल   और   मर्यादित   रहें  और   कुदरत   की   सम्पदाओं व्   नज़ारों   की   रक्षा   और   बढ़ोतरी   करने 


में   कुदरत   का   साथ   दें , और   कुदरत   जैसे   बिना   भेदभाब   के   सब   की   रक्षा   करती   है ,सब   का 


पालन -पोषण   ऎसे   ही   परमात्मा   भी   यही   चाहता   है ,कि   मेरे   द्वारा   बनाये   गये   इन्सान   भी 


मेरी   कुदरत   की   तरह   आपस   में   बिना   भेदभाव   के   रहें,और  एक  दूसरे   की   उन्नति   में   एक 


दुसरे   का   साथ   दें ,  और  जब   दुनिआबी   दौड़ -धूप   से   अशान्त  हों   तो  मेरी   कुदरत   की   गोद   में  


आ   कर   शान्ति -प्रसन्ता  और   दिव्य  ऊर्जा   को   महसूस   करें  और   जीवन   के  पथ   पर   निर्विघ्नता  से 


आगे   बढ़ते   रहें । 


                                             और   सच   कहें   तो   वास्तव   में   आज   के   इन्सान   के   लिए  आज  के   


इस   अशान्त  वातावरण   में   शान्त   रहने   के  लिए   उस   परमातमा   की   कुदरत   की   गोद   से  बढ़  कर 


और   किसी   भी   तरह  का  दूसरा  कोई   और   साधन   नहीं   था,  नहीं   है    और  न   ही  आने   वाले   युग


-युगांतरों   में  होगा ।  


                                           आज   विडम्ब्ना  यह   हुई   कि   जिन -जिन  कुदरत   के   रास्तों   पर   चल  

कर   इन्सान  शान्त   भाव  को  और   वास्तविक   उन्नति  को   पा   सकता   था ,  उसी   इन्सान   ने   अपने 


ही   हाथोँ   कुदरत   के   सारे   रास्तों   को   तहस -नहस   कर   अशान्ति   के   रास्तों   पर   अग्रसर   होना 


आरम्भ   कर   दिया,  और   इस   इन्सान   ने   तनिक   पीछे   मुढ़  कर   देखा   और   सोचा   तक   नहीं 


कि   परमात्मा   ने  यह   सारी   कुदरत   सारी   सृष्टि   की   मानव -जाति   के   बहुमुखी   विकास  और   खुश 


-हालि  के   लिए  ही   बनाई   है   उस   में   उस   का   अपना   कोई   भी   स्वार्थ   नहीं । पर   आज   हम   खुद 


-गर्ज   इन्सान   इस   तथ्य  को   समझ   ही   नहीं   रहें   हैं ,और   दिन  व्   दिन   कुदरत   को   बर्बाद   कर 


रहें   हैं ,  उसी   के   फलस्वरुप  खुद   भी   दिन   व्   दिन   बर्बाद   और   अशान्त   हो   रहें   हैं ।   अगर   आज 


भी   हम   अपनी   गलती   का   अहसास   कर  लेँ  और   आने   वाले   समय   में   अपनी   प्रकृति  माँ   की 


धरोहर  [सम्पदा]  की  देखभाल   के   लिए  सच्चे   दिल   से   दिव्य  सत्य   संकल्प  कर   लें  कि   बस   अब 


हम  अपनी   प्रकृति  माँ   की   रक्षा   में   किसी   भी   तरह   की   कोई   भी   भूल -चूक   नहीं   करेंगे ,तो 


फिर   यह   बात   भी   दावे  और  हर्ष   से   कही   जा   सकती   है ,कि   ऐसा   करने   के   बाद   सारी   दुनिया 


में   फिर   कोई   भी   इन्सान   अशान्त -निर्बल   और   असंतुष्ट   दिखाई   नहीं   देगा । । । 





{नोट :-आओ   हम   सभी   मिल   के   प्रकृति  माँ   की   देखभाल   के   लिए   यज्ञ -कर्म   करें'  इस   प्रकार  अपने   हितैषी   आप बनेँ }