माँ शब्द जब भी किसी के भी दिल से निकलता है तो उस वक़्त उस दिल में ममता का कैसा झरना फूट
पड़ता है ,वो सिर्फ माँ या फिर वो जीव' ही बता सकता है ,जिसके दिल से माँ शब्द निकलता है । अरे हमारे
द्बारा सिर्फ माँ शब्द के उच्चारण मात्र से हमारे भीतर एक बिजली की चमक की तरह ममता की लहर
दौड़ जाती है ,पर जब माँ अपने बच्चे को प्यार से दिल से पुकारती है ,तो उस वक़्त बच्चे को माँ से बिन
मांगे ही कैसे कैसे आशीर्वाद प्राप्त होते है ,वो सिर्फ माँ का दिल ही जानता है , इस लिए हमें माँ के दिल को
भूल कर भी नहीं दुखाना चाहिए,क्योंकि जब हम माँ के दिल को दुखाते तब हम यह सोचेँ की हमें कोई फ़र्क़ नहीं
पड़ता या हम अब बड़े हो चुके हैं,हम जो भी करें तो उसवक़्त हम बहुत बड़ी गलती कर रहें होते हैं ,जिसका
अहसास हमें जिन्दगी में कभी न कभी अवश्य होता है ,और उस वक़्त हमारे हाथ पश्ताने के इलावा
और कोई रास्ता नहीं होता,यह कई लोगों का अनुभव होगा कि जिन -जिन परिवारों में माँ का आदर
सत्कार नहीं होता अथवा माँ को रुलाया जाता है ,उस परिवार में कभी भी सुख शांति नहीं रहती ,
क्योंकि जब माँ रोती है ,तब उसके आँसुओं में सब कुछ तिनके की तरह बह जाता है। क्योंकि माँ ही
प्रकृति का साक्षात् रूप होती है ,और जब प्रकृति माँ प्रसन्न होती है ,तब कण -कण में हरियाली ही
हरियाली नज़र आती है और जब प्रकृति माँ हमारी ग़लतियों के कारण अथवा अनदेखी के कारण
रोती है या अत्यन्त दुखी होती है ,तब उसके आँसुओं के सैलाव में हर कोई तहस -नहस हो जाता है ।
जब माँ का हिर्दय खुश होता है अथवा जब-जब माँ हँसती है ,उस वक़्त सारी सृष्टि उसके आँचल में
समा जाती है । माँ बच्चों से हज़ारों मील दूर क्यों न हो फिर भी वो अपने बच्चों के दुःख -दर्द को कोसों
दूर से महसूस कर लेती है और दूर से ही अपने आशिर्वाद और दुयाओं से अपने बच्चों की झोली भर
देती है। क्योकि माँ से सारी सृष्टि की उत्पति हुई है तो उस माँ के लिए बच्चों की दूरियाँ और
नज़दीकियों की अटकलें कहाँ रह जाती हैं ।
हमें भी माँ' के प्रति हमेशा सेवा भावना और दिल की गहराईयों से प्रेम
करना चाहीए। यह हमारा केवल मात्र कर्तव्य बल्कि हमारा परम् धरम होना चाहीए ,अरे माँ हमारी दो
रोटी की भूखी नहीं होती बल्कि वो अपनी संतान की ह्र्दय से प्रेम भावना की ,आदर -सम्मान की और
हमारी प्रेम भरी नज़रों की प्यासी होती है, और माँ की इस प्रकार की माँग बच्चे अमीर हो या गरीब
हर कोई पूरा कर सकते है और कोई भी माँ अपने बच्चों से इस ज़्यादा कुछ भी नहीं चाहती और जो
वो हमें देती है वो है अपनी कोख से जन्म जो सारी सृष्टि के भगवान् भी ऐसा नहीं कर सकते
क्योंकि भगवान् जी को भी इस धरती माँ पर जन्म लेने के लिए माँ की कोख से जन्म लेना पड़ता
है । इस लिए हमें यहाँ एक अंतिम बात यह कर के माँ के ममतामई प्रसंग को यहीं विराम दे देना
चाहीए ,क्योंकि माँ शब्द की व्याख़्या करना ही नामुम्किन विषय है ,जैसे हम यूूँ कह सकते है की
सूर्य को दीपक दिखाना अथवा सागर को गागर में भरने जैसा ही है -----------------------धन्यवाद ।
{ जरूरी प्राथर्ना :-
माँ जो बचपन से लेकर बुढापे तक हमारी प्रेरणा स्रोत्र ,शुभचिंतक और प्रेम सरिता
सामान होती है उस माँ की आँखोँ से कभी भी एक भी आसूँ को न बहने दें यहाँ
तक हो सके माँ को हर तरह से तृप्त रखें ,और कभी भी ऐसा न हो की जब माँ को
हमारी ज़रूरत हो और माँ को हमें पुकारना पड़े ,हे दुनिया के इंसानो अपने -अपने
परिवारों में ऐसी ही पवित्र भावना को जाग्रत करें जाग्रत करें जाग्रत करें ----------!!!
< इंसान चाहे सौ सौ जन्म ले ले पर माँ के दूध का क़र्ज़ चुकाना उस के वश की बात नहीं है-नहीं है >