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Sunday, January 25, 2015

BLESSINGS

हमें  अपने माता -पिता  और  सभी बड़े  बजुर्गों  की 

दिल की गहराईओं  से  आदर ,प्रेम  व्  सेवा करनी 

चाहिए ,क्योंकि जिनके कारण हम इस दुनिया में होते 


हैं यदि हम  उसी कारण  को  भूल  जाते  हैं तो फिर हम 

अपने  जीवन में  जितनी  मर्ज़ी  अपनी  मनपसन्द  की 

उच्चाईओं   को  छू  लें ,तो  हम  फिर ये  समझेँ  की  

हम  ने  जीवन  में  सब कुछ  हासिल  कर  लिया  है  तो 

उस वक़्त  हमारी  यह सब से बड़ी भूल  होती  है,क्योंकि 

जिस  इमारत  की  नींव  ही  कमजोर  होती  है ,तो  हम 

यह  समझेँ  की  वो  इमारत  एक लम्बे  समय  तक 

टिकी रहेगी  तो  ऐसा  समझना  ही  हमारी  सब से भूल 

होती  है ,क्योंकि  जब  हम  कोई  भी  निर्माण  कार्य  

आरम्भ  करते हैं ,तो  सब  से पहले  हम  धरती  माँ  का 

पूजन -बंधन  करते हैँ ,और  धरती  माँ  के चरणों  में 

झुक  कर  प्रणाम  करते है और  आर्शीवाद  लेते है ,और 

यह  मन  ही मन यह भावना  रखते  हैं ,कि  हमारी  यह 

इमारत सदा सलामत रहे और खासकर नींव के निर्माण 

पर  बड़ा  ध्यान  देते  हैं ,इसी  तरहं  हमे  भी  अपने  माँ-

बाप और बड़े  बज़ुर्गों की तय दिल से सेवा करनी चाहिए 

और उनके चरणों में झुक कर  आर्शीर्वाद  लेना  चाहिये 

अगर  हम ऐसा  ईमानदारी  से करते है तो फिर माँ-बाप 

दुआओं  से हमारे जीवन की नींव मजबूत तो रहती ही है 

पर उसके साथ  हम जीवन में  एक  बहुत बड़ा  अपराध 

करने से भी बच जाते हैं जैसे हम एक  नन्हें पौधे को उस

की धरती  माँ  से  उखाड  देते  हैं ,तब  उस की क्या दशा 

होती  है यह हमें बताने की किसी को कोई जरूरत नहीं 

और यह कुदरत  का  एक अटल  सत्य है कि  जब-जब 

भी  किसी  ने अपने  होने  के  बाजूद  अथवा  कारण का 

आदर सत्कार नहीं किया है  तब -तब उनका अपना 

भी नामोनिशान नज़र  नहीं  आया , अरे माँ -बाप और 

बड़े बजुर्ग हमारे आदर्श होते है वो तोऐसे पेड़ होते हैं की 

जब-जब भी हम उनकी  छाया  में  जाते  हैं  तब-तब 

मौसम  का  मिज़ाज़  कैसा  भी  क्यों  न हो  पर वो हमें 

उस वक़्त  ठंडी  हवा  जरूर   हैं यह  उनकी मजबूरी नहीं 

होती  बल्कि उनका  स्वभाव  ही ऐसा  होता है ,और उन

के दिल से निकली दुआओं में इतना असर होता है की 

हम माँ-बाप से चाहे मीलों दूर भी क्यों न  बैठे हो और 

वहां  पर भी हमें  उनकी दुआओं  का असर  अनुभव 

होता  है ,अगर दुनिया  मे  कोई  हमें  जीवन  में  सच्चा 

प्यार  करता  है  तो वो सिर्फ और सिर्फ  हमारे माँ-बाप 

ही  होते  हैं ,अगर हम इस के विपरीत  कुछ  और सोचते

हैं  तो फिर हम वास्तव  में  अपने माँ-बाप  के प्यार का 

अनादर   हैं ,इस बात के लिए  माँ-बाप  को तो कोई फर्क  
नहीं पड़ता  पर हमारे जीवन की नींव जरूर कमजोर पड़ 


जाती  है  पर  हमारे द्वारा ऐसा  करने के वाबजूद भी  


हमारे माँ-बाप के दिल मे इतनी करुणा भरी होती है की 

वो फिर भी यही  चाहते  हैं की अनायास  ही उनके  श्री -

मुख  यह दुआ  निकल जाती है की  हमारे  बच्चों  तुम 

जियो  हजारों साल - साल के दिन हो एक हज़ार`-साल 

के दिन हो एक हज़ार -साल के दिन हो एक हज़ार----!!!

{कृप्या  अपने माँ-बाप  व्  बड़े  बजुर्गों को अनदेखा  न करें ---------------------------------------------धन्यवाद }




PRAYER<>प्राथर्ना


  
 हे प्रभु करें विनती यही हम---
                                हे प्रभु करें विनती यही हम--- 
   बस तुम्हे ही चाहें सदा हम*
     तेरी राहों पर चलें सदा हम*  
        भूल पायेँ न कभी तुम्हे हम* 
           जी पायें न भूल कर तुम्हें हम*    
 हे प्रभु करें विनती यही हम--- 
                                हे प्रभु करें विनती यही हम--- 
           आँख खोलें जब भी सुबह हम*
              बस पायें हर तरफ तुम्हें  हम* 
                 कर्म को ही पूजा बनाये हम*
                     वर बस यही तुम से पायें हम* 
   हे प्रभु करें विनती यही हम--- 
                                 हे प्रभु करें विनती यही हम---
   तेरे चरणों में ही रहें सदा हम* 
       भूल कर भी भूल पायें ना तुम्हे हम*            
           प्यार तेरे में ही सब भूल जाएँ हम* 
               जुबां से तेरे ही गीत गा पायें हम*      
हे प्रभु करें विनती यही हम--- 
                                 हे प्रभु करें विनती यही हम--- 
     पात्र कृपा के  तेरे बन जाएँ हम* 
             हाथ सिर पर है रखना तर जाएँ हम* 
            तेरी बन्दगी करते करते मर जाएँ हम* 
               तू है सदा सबका न भूल पायें हम* 
    हे प्रभु करें विनती यही हम--- 
                                हे प्रभु करें विनती यह हम---




Friday, January 23, 2015

TIPS FOR HAPPY AND SENSIBLE LIFE STYLE***खुशहाल और दिव्य जीवन की और



वास्तविक कमाई***REAL EARNING

1. जीवन  में  कोई  भी  कार्य  करते  समय  हमारी  मानसिकता 
    यह  कभी नहीं  होनी चाहिये जिससे  किसी  दूसरे  का  तनिक
    भी  अहित  हो ***   
     

 2. जिस तरह का व्यवहार हमें खुद को पसंद ना हो उस तरह का 
     व्यवहार किसी दूसरे के साथ भी ना करें यही इंसानी धर्म है*** 



3. इस दुनिया में जो भी पैदा होता है वो अपना भाग्य साथ ले कर 
    पैदा होता है और अगर हम ऐसा सोचें की हम किसी को कुछ दे 
    रहें हैं अथवा किसी की मदद कर के उस पर अहसान कर रहें हैं 
    तो ऐसा सोच कर हम बहुत बड़ी गलती कर रहे होते हैं क्योंकि 
    उस वक़्त सामने वाले का भाग्य हमारे द्वारा कुछ न कुछ उस 
    के लिए करवा रहा होता है,और यह एक अटल सत्य है*** 



 4. अगर हम जिन्दगी में पूरी ईमानदारी से काम करते हैं तो उस वक़्त 
     देश ,दुनिया व् समाज का भला तो हो ही रहा होता है,पर सब से 
    ज्यादा भला किसी का हो रहा होता है तो वो स्वयं का हो रहा होता 
    है,क्योंकि जब हम पूरी ईमानदारी से जिन्दगी का निर्वाह कर रहें 
    होतें हैं ,तो उस वक़्त हमारे भीतर कैसी दिव्य ऊर्जा और तेज का
    का संचार होता है जिस को हम किसी के आगे अपनी जुबान से 
    व्यान नही कर सकते| और यह भी एक अटल सत्य है की एक 
    ईमानदार इंसान के सामने असत्य अपने -आप निस्तेज हो जाता 
    है***                   

5. आज जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत है,वो है प्यार और भाईचारे से 
    मिलजुल कर इकट्ठे रहने की अगर हम ऐसा करने में पूरी तरह से 
    कामजाब हो जातें हैं,तो फिर हमें यह संशय नहीं करना चाहिये की 
    हम इस पूरी दुनिया से सामाजिक ,आर्थिक,मानसिक और कई भी 
   तरह की अपराधिक विरितियों को दूर नहीं कर सकते,क्योंकि आपसी  
    प्रेम और प्रगाढ़ भाईचारा ही ऐसी रामबाण औषधी है ,जिस से कुछ 
    भी असम्भव नहीं***          


6. अगर हम चाहते हैं की जिन्दगी में कोई हमारा आसरा बने या हमारा 
    कोई साथ दे तो हमें भी किसी को आसरा अथवा किसी को साथ देना 
    चाहीए,अगर हम ऐसा नहीं करते तो फिर हमारा किसी दुसरे से ऎसी 
    अपेक्षा करना व्यर्थ है।


7. अगर हमारे मन में ऐसी भावना हो की कोई हमें हमेशा याद रखे 
    अथवा याद करे तो फिर एक पवित्र भावना हमारे मन में यह भी 
    होनी चाहीए की अगर हमें दुनिया में याद किया जाये तो वो सिर्फ़ 
    हमारे नेक और भले कर्मो के लिए याद किया जाये न की हमारे बुरे 
    कुकर्मों के लिए याद किया जाये। 
 
  



    
    


     








 

















सुसंस्कार कब से------?


               सुसंस्कार  कब  से------?

                       
  अब हम बात अथवा विचार इस विषय पर करते हैं,कि हम सब 
को अपने जीवन में सुसंस्कारों को कब और किस समय स्थान 
देना चाहिये,अगर हम इस के समय की सीमा बाँधे तो फिर यह 
एक हास्यास्पद अथवा वयंगात्मक बात होगी,पर इस प्रश्न के 
जवाब से पहले हमें निम्नांकित कुछ महत्बपूर्ण प्रश्नों के जवाब 
ढूंढने अथवा देने होंगे :-

1.जब कोई भी जीव दुनिया में जन्म लेता है तब उसे कब साँस 

   लेना शुरू करना चाहिये------?   ज़वाब मिलेगा ------शुरू से  

2.जब हम कोई गाड़ी खरीदें तो कोई हम से पूछे की भाई साहेब 

   अगर आप को यह गाड़ी चलानी हो तो आप इस में पेट्रोल कब 
   डालेंगे तो ------?                      ज़वाब मिलेगा ------शुरू से

3.जब कोई हम से पूछे की अगर हम को अपने बच्चों को डॉक्टर 

   अथवा इंजीनियर बनाना तो हम को अपने बच्चों को कब शिक्षा 
   देना प्रारम्भ करना चाहिये------?ज़वाब मिलेगा ------शुरू से 

4.जब कोई किसान अपने खेत में बीज बोय तो उस से कोई पूछे 

   की वो कब बीज को पानी देगा ----?ज़वाब मिलेगा ------शुरू से

   इसी प्रकार जब हम यह बात करें की हमें अपने बच्चों में अथवा 

   अपने स्वयं के जीवन में सुसंस्कारों को कब स्थान देना चाहिये       
   अथवा किस समय से हमें सुसंस्कारों को अपने जीवन में भर 
   लेना चाहिये तो इस बात पर भी हमारे मन में कोई भेद नही 
   होना चाहिये,कि हमें इस बात का जवाब देने के लिए सोचना 
   पड़े,अगर हमें अपने बच्चों के भविष्य को सही रूप में सवारना 
   हो तो हमें शुरू से ही सुसंस्कारों को अपने बच्चों के भीतर भर 
   देना चाहिये,ताकि आने वाले समय में हमारे बच्चे सारी दुनिया 
   का नेतृत्व करने के लिए सक्षम हों। और यह हमारी एक नैतिक 
   जिम्मेबारी भी बनती है ,आज सारी दुनिया में हम को जो भी 
   असमानताएं , अपराध अथवा कोई भी कुरीतियां नज़र आ रही 
   हैं उनका बस एक ही कारण है और वो है हम सब में सुसंस्कारों
   की कमी ,जो आज की एक गम्भीर समस्या है ,और इस का एक 
   ही उपाय है वो यह की हम सब में शुरू से ही सुसंस्कारों का होना 
   अति जरूरी है ,जिस से सारी दुनिया में स्वर्ग सा माहौल बन सके,
   और हमारी नई पीढ़ियाँ एक सुदृढ सम्राज्य और प्यार भरे माहौल
   में फलें-फूलें । 


{नोट :-आओ हम सभी छोटे-छोटे और प्यार भरे सुसंस्कारों को अपने 

           सभी बच्चों में भरें और उनको और उनके भविष्य को सुरक्षित
           करें,यह आज एक अत्यंत गम्भीर विषय है अता:इस गम्भीरता 
           को समझने की कोशिश करें -------------धन्यवाद!!!   





 










Thursday, January 22, 2015

कैसी होती है हमारी प्यारी माँ ( उद्गार)



कैसी होती  है हमारी प्यारी माँ 
        जब भी हम रोते तो हँसाती हमारी माँ 
खुद गीले पर सोती अपनी माँ 
      सूखे पर सुलाती हमें हमारी  माँ 
जब हमारा कोई नही बनता 
        उस वक़्त बनती है हमारी माँ 
काँटे देती है दुनिया हमें सदा 
       फूलों पर सुलाती सदा हमारी माँ 
गमों से घिरे रहते हैं हम सदा 
       खुशियों से लपेटे रखती सदा हमारी  माँ 
दुनिया देती है जगह हमें इधर -उधर 
       दिल में रखती है सदा हमें हमारी माँ 
ख्याल सदा नहीं रखता कोई हमारा 
       देखभाल सदा रखती है हमारी माँ 
सब कहते हैं स्वर्ग दुनिया का है और कहीं 
      पर स्वर्ग देती है अपने ही चरणों हमारी माँ 
कोई कहता माँ ऐसी है कोई कहता वैसी है 
     पर परिभाषा रहित होती है सदा हमारी माँ 
सहारा देतें हैं सभी सहारे वालों को 
     बेसहारों को सहारा देती है हमारी माँ 
कोई खिलायेगा इक या दो दिन हमें   
         पर अन्नपुर्णा होती है सदा हमारी माँ 
हम रोतें रहें सदा परवाह है किसे 
         पल में  ही रो देती है हमारे लिए हमारी माँ  
करो कुछ भी खुश होता नहीं कोई सदा 
       खुशहाल हो जाये छोटी सी मुस्कान से हमारी माँ 
हम रहें किसी भी हाल में परवाह न करे कोई 
       पर जुदा इक पल भी न हो हम से हमारी माँ 
सब कहें हमारा खुदा कहीं और है 
       पर हमारा खुदा हमारे घर में है हमारी माँ 
चलें हमेशा उन्हीं राहों पर 
      जिस पर चलने को कहे हमारी प्यारी माँ 
दुनिया तो सदा डाले हमें उलटी राहों पे 
     पर रास्ता सीधा दिखाती सदा हमारी माँ 
सब धकेलें हमें सदा अंधेरों में 
     अंधेरों में भी रोशनी दिखाये हमारी माँ 
हों नतमस्तक सदा माँ के श्री चरणों में 
      खुदा भी खुश होते सदा अगर खुश हो हमारी माँ 
झोली भरो अपनी माँ के आशीषों से सदा 
      खुशियाँ मुड़ -मुड़ के आएँगी तुम्हारे दामन में 
माँ लेती नहीं कुछ देती है सदा -सदा 
      अरे माँ होती है ऐसी जिस के चरणों खुद झुके खुदा  
                                                             खुद झुके खुदा 
                                                                खुद झुके खुदा । 

                                                                               {माँ के श्री चरणों में वन्दन}     



















Monday, January 19, 2015

सुसंस्कारिता

                                        सुसंस्कार 

जब हम सुसंस्कार शब्द के बारे में बोलते हैं या सुनते हैं 
तो हम सभी मन ही मन अपने भीतर सावधान होने के 
लिए प्रेरित होने जैसा महसूस करते हैं और फिर अच्छा 
भी लगता है। सुसंस्कार शब्द के  अर्थ  की  गहराई को  
परिभाषित करने की चेष्टा करें तो छोटा मुहं बड़ी बात 
वाली कहावत होगी,क्योंकि सुसंस्कार शब्द अपने आप 
में एक व्यापक अर्थ को अपने भीतर समाये हुए है,अगर 
हम सब इसका मतलब समझने की कोशिश करें तो बस 
यही समझ आता है,कि जैसे सुसंस्कार शब्द हमें अपनी 
-अपनी मर्यादा और शिष्टाचार भरे जीवन शैली की और 
प्रेरित कर रहा हो। हम ज्युँ  कहे तो सुसंस्कार शब्द हमारे 
मन के भीतर बैठे अध्यापक जैसा ही है,जो हमें अपने 
जीवन को सुव्यवस्थित और श्रेष्ठ आचरण धारण करने 
के लिए प्रेरित करता रहता है।और इसी सुसंस्कार शब्द की 
प्रेरणा से हम स्वयं सुव्यवस्थित और श्रेष्ठ आचरण वाले 
होते हैं ,और अपने आने वाली पीढ़ीओं [संतानों] को  श्रेष्ठ
आचरण धारण करने के लिए प्रेरित करते हैं,और अगर हम 
मिल इस सुसंस्कार शब्द की गरिमा को बनाये रखेंगें तो 
फिर सारी दुनिया में सम्पूर्ण मानव-जाति को कुसंस्कारों,
अपराधों,अमानविय कर्मों,दंगें-फसादों और भी कई तरह की 

बुराइओं से सहजता से हि बचाया जा सकता है।  

















                 सुसंस्कार  कब  से------?

                       
   अब हम बात अथवा विचार इस विषय पर करते हैं,कि हम सब 
को अपने जीवन में सुसंस्कारों को कब और किस समय स्थान 
देना चाहिये,अगर हम इस के समय की सीमा बाँधे तो फिर यह 
एक हास्यास्पद अथवा वयंगात्मक बात होगी,पर इस प्रश्न के 
जवाब से पहले हमें निम्नांकित कुछ महत्बपूर्ण प्रश्नों के जवाब 
ढूंढने अथवा देने होंगे :-

1.जब कोई भी जीव दुनिया में जन्म लेता है तब उसे कब साँस 

   लेना शुरू करना चाहिये------?   ज़वाब मिलेगा ------शुरू से  

2.जब हम कोई गाड़ी खरीदें तो कोई हम से पूछे की भाई साहेब 

   अगर आप को यह गाड़ी चलानी हो तो आप इस में पेट्रोल कब 
   डालेंगे तो ------?                      ज़वाब मिलेगा ------शुरू से

3.जब कोई हम से पूछे की अगर हम को अपने बच्चों को डॉक्टर 

   अथवा इंजीनियर बनाना तो हम को अपने बच्चों को कब शिक्षा 
   देना प्रारम्भ करना चाहिये------?ज़वाब मिलेगा ------शुरू से 

4.जब कोई किसान अपने खेत में बीज बोय तो उस से कोई पूछे 

   की वो कब बीज को पानी देगा ----?ज़वाब मिलेगा ------शुरू से

   इसी प्रकार जब हम यह बात करें की हमें अपने बच्चों में अथवा 

   अपने स्वयं के जीवन में सुसंस्कारों को कब स्थान देना चाहिये       
   अथवा किस समय से हमें सुसंस्कारों को अपने जीवन में भर 
   लेना चाहिये तो इस बात पर भी हमारे मन में कोई भेद नही 
   होना चाहिये,कि हमें इस बात का जवाब देने के लिए सोचना 
   पड़े,अगर हमें अपने बच्चों के भविष्य को सही रूप में सवारना 
   हो तो हमें शुरू से ही सुसंस्कारों को अपने बच्चों के भीतर भर 
   देना चाहिये,ताकि आने वाले समय में हमारे बच्चे सारी दुनिया 
   का नेतृत्व करने के लिए सक्षम हों। और यह हमारी एक नैतिक 
   जिम्मेबारी भी बनती है ,आज सारी दुनिया में हम को जो भी 
   असमानताएं , अपराध अथवा कोई भी कुरीतियां नज़र आ रही 
   हैं उनका बस एक ही कारण है और वो है हम सब में सुसंस्कारों
   की कमी ,जो आज की एक गम्भीर समस्या है ,और इस का एक 
   ही उपाय है वो यह की हम सब में शुरू से ही सुसंस्कारों का होना 
   अति जरूरी है ,जिस से सारी दुनिया में स्वर्ग सा माहौल बन सके,
   और हमारी नई पीढ़ियाँ एक सुदृढ सम्राज्य और प्यार भरे माहौल
   में फलें-फूलें । 


{नोट :-आओ हम सभी छोटे-छोटे और प्यार भरे सुसंस्कारों को अपने 

           सभी बच्चों में भरें और उनको और उनके भविष्य को सुरक्षित
           करें,यह आज एक अत्यंत गम्भीर विषय है अता:इस गम्भीरता 
           को समझने की कोशिश करें -------------धन्यवाद!!!   


 











Sunday, January 18, 2015

वास्तविक प्रार्थना {REAL PRAY}

हे  इस  पुण्य  धरा  पर  रहने  वाले  इंसानो  आओ मिल 
-कर  करें  परमपिता  परमात्मा  से  ऐसी  दिव्य  सर्व - 
जनिक  प्रार्थना  जिस  से  हो  सके  विश्व  का  दिव्य                                  निर्माण-----।
1.   हे प्रभु हम से कोई भी ऐसा कार्य न हो जो हमें  तुमसे दूर करदे। 

2.  हे प्रभु हम से कोई भी ऐसा भोजन न हो जो दूसरों के हक़ का हो। 

3.  हे प्रभु हम कोई  भी ऐसा दृश्य न देखें जो दोष दृष्टि पैदा करे । 

4.  हे प्रभु हमसे कोई भी ऐसा कार्य न हो जो निंदनीय हो। 

5.  हे प्रभु किसी की ऐसी दशा न हो जो हमारी आंखों में आंसू लाये।

6.  हे प्रभु हमारे हाथ आपको पुकारने के लिये उठे न की दूसरों की इज्ज़त 

      उछालने के लिए। 

7.  हे प्रभु हमें ऐसी दिव्य दृष्टि दें कि हम जिस तरफ भी देखें आपके ही           दर्शन हों।   

8.  हे प्रभु हम जो बोले केवल  आप ही की प्रसन्नता  के  लिए  बोले । 


9.   हे प्रभु हम जिस से भी मिलें प्रभु भाव  से ही  मिलें । 


10. हे प्रभु हम से जो भी हो वो प्राणी मात्र के लिए प्रेरणा श्रोत हो जाए। 


11. हे प्रभु हम जो भी देखें वो केवल प्रभु भाव से ही देखें । 


12. हे प्रभु हमारे द्वारा आप की कुदरत में किसी भी तरह का बिगाड़ न हो। 

13. हे प्रभु हम दूसरों की उन्नति में हमेशां ही प्रसन्न चित रहें । 

14. हे प्रभु हम कभी भी दूसरों के दुःख व्  कष्टों का कारण न बनें ।


15. हे प्रभु हम पर ऐसी कृपा करना की हमारा वास केवल आप के हिर्दय           में हि हो । 

16. हे प्रभु हम धन -दौलत के नशे में अन्धें न हों ,केवल आप हि के प्रेम में 
      अन्धें में हों । 
17.हे प्रभु हम हमेशा इन्सानियत का धर्म ही निभाएं न की हैबानीयत का। 

18. हे प्रभु हम हमेशा दूसरों के कार्य सवारने के काम आएं ना दूसरों के 

      कार्य बिगाड़ने के । 
19. हे प्रभु हमारे दिल में हर एक जीव-जन्तु के प्रति दया भावना बनी रहे। 

20. हे प्रभु हमारे जीवन में हमेशा आपके दिव्य ज्ञान का प्रकाश बना रहे। 


21.  हे प्रभु हम से कोई भी ऐसे कार्य मत करवाना जिससे हम इंसानी राह 

      से भटक कर शैतानी राह की और चल दें । 

22.  हे प्रभु हम हमेशा दूसरों को सुख और चैन देने वालों की कतार में ही 

       नज़र आयें । 

23.   हे प्रभु मेरे कोई भले तेरी बनाई हुई वस्तुएं के पीछे भागे पर हे मेरे 

        मालिक मैं हमेशा तुझको  ही पाने के लिए  भागता फिरूँ।  

24.   हे प्रभु हमें कुछ भी पता नहीं की हमारे लिए क्या भला या बुरा 

        है पर आप हमें वो ही जो देना जो आपकी आपकी मर्जी के अनुकूल 

        हो ।