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Sunday, January 25, 2015

BLESSINGS

हमें  अपने माता -पिता  और  सभी बड़े  बजुर्गों  की 

दिल की गहराईओं  से  आदर ,प्रेम  व्  सेवा करनी 

चाहिए ,क्योंकि जिनके कारण हम इस दुनिया में होते 


हैं यदि हम  उसी कारण  को  भूल  जाते  हैं तो फिर हम 

अपने  जीवन में  जितनी  मर्ज़ी  अपनी  मनपसन्द  की 

उच्चाईओं   को  छू  लें ,तो  हम  फिर ये  समझेँ  की  

हम  ने  जीवन  में  सब कुछ  हासिल  कर  लिया  है  तो 

उस वक़्त  हमारी  यह सब से बड़ी भूल  होती  है,क्योंकि 

जिस  इमारत  की  नींव  ही  कमजोर  होती  है ,तो  हम 

यह  समझेँ  की  वो  इमारत  एक लम्बे  समय  तक 

टिकी रहेगी  तो  ऐसा  समझना  ही  हमारी  सब से भूल 

होती  है ,क्योंकि  जब  हम  कोई  भी  निर्माण  कार्य  

आरम्भ  करते हैं ,तो  सब  से पहले  हम  धरती  माँ  का 

पूजन -बंधन  करते हैँ ,और  धरती  माँ  के चरणों  में 

झुक  कर  प्रणाम  करते है और  आर्शीवाद  लेते है ,और 

यह  मन  ही मन यह भावना  रखते  हैं ,कि  हमारी  यह 

इमारत सदा सलामत रहे और खासकर नींव के निर्माण 

पर  बड़ा  ध्यान  देते  हैं ,इसी  तरहं  हमे  भी  अपने  माँ-

बाप और बड़े  बज़ुर्गों की तय दिल से सेवा करनी चाहिए 

और उनके चरणों में झुक कर  आर्शीर्वाद  लेना  चाहिये 

अगर  हम ऐसा  ईमानदारी  से करते है तो फिर माँ-बाप 

दुआओं  से हमारे जीवन की नींव मजबूत तो रहती ही है 

पर उसके साथ  हम जीवन में  एक  बहुत बड़ा  अपराध 

करने से भी बच जाते हैं जैसे हम एक  नन्हें पौधे को उस

की धरती  माँ  से  उखाड  देते  हैं ,तब  उस की क्या दशा 

होती  है यह हमें बताने की किसी को कोई जरूरत नहीं 

और यह कुदरत  का  एक अटल  सत्य है कि  जब-जब 

भी  किसी  ने अपने  होने  के  बाजूद  अथवा  कारण का 

आदर सत्कार नहीं किया है  तब -तब उनका अपना 

भी नामोनिशान नज़र  नहीं  आया , अरे माँ -बाप और 

बड़े बजुर्ग हमारे आदर्श होते है वो तोऐसे पेड़ होते हैं की 

जब-जब भी हम उनकी  छाया  में  जाते  हैं  तब-तब 

मौसम  का  मिज़ाज़  कैसा  भी  क्यों  न हो  पर वो हमें 

उस वक़्त  ठंडी  हवा  जरूर   हैं यह  उनकी मजबूरी नहीं 

होती  बल्कि उनका  स्वभाव  ही ऐसा  होता है ,और उन

के दिल से निकली दुआओं में इतना असर होता है की 

हम माँ-बाप से चाहे मीलों दूर भी क्यों न  बैठे हो और 

वहां  पर भी हमें  उनकी दुआओं  का असर  अनुभव 

होता  है ,अगर दुनिया  मे  कोई  हमें  जीवन  में  सच्चा 

प्यार  करता  है  तो वो सिर्फ और सिर्फ  हमारे माँ-बाप 

ही  होते  हैं ,अगर हम इस के विपरीत  कुछ  और सोचते

हैं  तो फिर हम वास्तव  में  अपने माँ-बाप  के प्यार का 

अनादर   हैं ,इस बात के लिए  माँ-बाप  को तो कोई फर्क  
नहीं पड़ता  पर हमारे जीवन की नींव जरूर कमजोर पड़ 


जाती  है  पर  हमारे द्वारा ऐसा  करने के वाबजूद भी  


हमारे माँ-बाप के दिल मे इतनी करुणा भरी होती है की 

वो फिर भी यही  चाहते  हैं की अनायास  ही उनके  श्री -

मुख  यह दुआ  निकल जाती है की  हमारे  बच्चों  तुम 

जियो  हजारों साल - साल के दिन हो एक हज़ार`-साल 

के दिन हो एक हज़ार -साल के दिन हो एक हज़ार----!!!

{कृप्या  अपने माँ-बाप  व्  बड़े  बजुर्गों को अनदेखा  न करें ---------------------------------------------धन्यवाद }




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