आज हम अपने व्यस्त जीवन की दौड़ धूप में इतने ज्यादा खो चुके हैं कि हम अक्सर अपने जीवन के
इर्दगिर्द क्या क्या हो रहा है अथवा क्या क्या होनाचाहिए इस बात पर बात ध्यान हि नहीं दे पाते । लेकिन
हम कितने भी व्यस्त क्यों न हों हमें तनिक शान्त बैठ कर इस बात पर ध्यान ज़रूर देना चाहिए कि हम भी
इस सारी दुनिया,देश,शहर,समाज ओर अपने अपने छोटे छोटे परिवार के साथ जुड़े हुए हैँ,ओर हमारा इन
सब के जुड़े हुए होने के कारण हमारा भी कर्त्तव्य हो जाता है कि हम भी अपनी भाग दौड की दुनिया से थोङा
सा समय निकालें ओर अपने आस पास क्या क्या हो रहा है उस पर भी ध्यान दें । इस बात का यह अर्थ नहीं
कि सब कुछ हमारे कारण हि हो रहा है अगर हम ध्यान नहीं देँगे तो सारी दुनिया ठहर जायेगी ऎसा कभी
नहीं हुआ ना हो रहा है ओर ना हि होगा । बात जरा यह सोचने की है कि कहीं हम स्वार्थी भाव में तो नहीं जी
रहें हैं कि बस अब हमें किसी कि कोई ज़रूरत नहीं है,अगर हम ऐसा सोचते हैं तो हम भारी गल्ती कर रहें हैं ,
हमें यह बात कभी नहीं भूलनी चाहिए कि हम भी इस पूरी दुनिया ,देश ,शहर,समाज़ ओर अपने परिवार का
ही हिस्सा हैं ,ओर उसी के नाते हमें भी यह ज़रूर सोचना अथवा महसूस'करना चाहिए कि कहीं किसी को
मेरी अथवा मेरी किसी भी तरह की सेवा कि किसी को आवश्यकता तो नहीं है',अगर हो तो हमें ज़रा सा
समय निकाल कर किसी के काम जरूर आना चाहिए । ओर हमें इस बात को ज़रा ध्यान से सोचना चाहिए
कि यह सारी प्रकृति हर तरहं से किसी दुसरे को देने के भाव में ही टिकी हुई है ,तो मेरे भाई हम क्यों प्रकृति
भाव को छोड़ कर स्वार्थी भाव में जीयें, अगर आज का हर इंसान अगर इसी भाव को अपने मन में बिठा कर
निःस्वार्थी भाव से जीया हुआ होता तो आज शायद हम भी सभी अपना मस्तक गर्व से उठा कर यह कह सकते
कि हाँ हम सभी ने किसी न किसी के लिये कुछ न कुछ दिल से किया। …दिल से किया। …… दिल से किया।
इर्दगिर्द क्या क्या हो रहा है अथवा क्या क्या होनाचाहिए इस बात पर बात ध्यान हि नहीं दे पाते । लेकिन
हम कितने भी व्यस्त क्यों न हों हमें तनिक शान्त बैठ कर इस बात पर ध्यान ज़रूर देना चाहिए कि हम भी
इस सारी दुनिया,देश,शहर,समाज ओर अपने अपने छोटे छोटे परिवार के साथ जुड़े हुए हैँ,ओर हमारा इन
सब के जुड़े हुए होने के कारण हमारा भी कर्त्तव्य हो जाता है कि हम भी अपनी भाग दौड की दुनिया से थोङा
सा समय निकालें ओर अपने आस पास क्या क्या हो रहा है उस पर भी ध्यान दें । इस बात का यह अर्थ नहीं
कि सब कुछ हमारे कारण हि हो रहा है अगर हम ध्यान नहीं देँगे तो सारी दुनिया ठहर जायेगी ऎसा कभी
नहीं हुआ ना हो रहा है ओर ना हि होगा । बात जरा यह सोचने की है कि कहीं हम स्वार्थी भाव में तो नहीं जी
रहें हैं कि बस अब हमें किसी कि कोई ज़रूरत नहीं है,अगर हम ऐसा सोचते हैं तो हम भारी गल्ती कर रहें हैं ,
हमें यह बात कभी नहीं भूलनी चाहिए कि हम भी इस पूरी दुनिया ,देश ,शहर,समाज़ ओर अपने परिवार का
ही हिस्सा हैं ,ओर उसी के नाते हमें भी यह ज़रूर सोचना अथवा महसूस'करना चाहिए कि कहीं किसी को
मेरी अथवा मेरी किसी भी तरह की सेवा कि किसी को आवश्यकता तो नहीं है',अगर हो तो हमें ज़रा सा
समय निकाल कर किसी के काम जरूर आना चाहिए । ओर हमें इस बात को ज़रा ध्यान से सोचना चाहिए
कि यह सारी प्रकृति हर तरहं से किसी दुसरे को देने के भाव में ही टिकी हुई है ,तो मेरे भाई हम क्यों प्रकृति
भाव को छोड़ कर स्वार्थी भाव में जीयें, अगर आज का हर इंसान अगर इसी भाव को अपने मन में बिठा कर
निःस्वार्थी भाव से जीया हुआ होता तो आज शायद हम भी सभी अपना मस्तक गर्व से उठा कर यह कह सकते
कि हाँ हम सभी ने किसी न किसी के लिये कुछ न कुछ दिल से किया। …दिल से किया। …… दिल से किया।
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