हमारी प्रकृति माँ
आज के दौर में हमारी सब से बड़ी समस्या यह हो गई है ,कि हम हर वक़्त अशांत वातावरण से
माहौल में अपना जीवन व्यतीत कर रहें हैं ,जो हमारे वश की बात नहीं कि हम हर तरफ अपना मन -
पसन्द माहौल पैदा कर लेँ ,लेकिन इस का यह अर्थ नहीं कि हम हर वक़्त अशांत ही रहें। इस से राहत
पाने के लिए उस परमपिता परमात्मा ने हमें प्रकृति माँ के रूप में बहुत सारे वरदान दिये हैं, पर
हम आज हम दुनियावी चकाचौंद में इतने खो गए हैं ,कि हम सब ऊपर -ऊपर से तो बहुत बढ़िया -
बढ़िया नज़र आते हैं ,और ऐशोआराम की सामग्रीयों से अपने आप को बड़ा आरामदायक महसूस
करते हैं, पर वास्तविकता हम सब ऊपर -ऊपर भले ही महसूस ना होने दें अगर हम अपने-अपने दिल
पर हाथ रख कर पूछें और महसूस करें ,तो हर किसी के भीतर मन से एक ही ज़बाब आएगा कि
जी हां हम सब थके -थके हैं और भीतर से पूरी तरह खोखले अथवा खाली -खाली हो चुकें हैं , जिस
का कारण सिर्फ एक ही है कि हम कुदरत से दूर -दूर हट के जीने आदि हो चूकें हैं ,कोई हम से
कारण पूछे हम सब के कारण अलग -अलग होंगें, जैसे की हम में से कोई कहता है , कि
क्या करें भई घर की मज़बूरी है , कोई कहता है कि हमें क़ारोबार की मज़बूरी है, और कोई
तो यह कहने से भी पीछे नही हटते कि क्या करें भई अब तो आर्टिफसिकल [बनाबटी ] दिखाबे
का ज़माना है, और ज़माने के साथ चलना हमारी मज़बूरी है , पर उनसे यह कोई नहीं कहता
कि नहीें साहेब जी नहीं हमारा कुदरत के साथ जुड़ कर रहना भी अति जरूरी है, पर हम
हैँ कि बस यही एक बात करके अपना-अपना दामन झाड़ लेतें कि जैसा देश -वैसा भेष । पर
तनिक विचार कर के हम देखें कि जिस-जिस देश में हम रहतें हैं, वहाँ सागर और हमारी
प्यारी -प्यारी नदीयां भी बहती हैँ , वहां के खेत -खलियानों में फसलों और बनस्पतियों की
हरियाली भी नज़र आती है, कहीं बड़े -बड़े पर्वत पहाड़ ,और कहीं - कहीं पर्वतों से ख़ूबसूरत झरने
बहते नज़र आते हैं , और आकाश कि और चेहरा उठा कर के देखें तो हज़ारों तरहं के पक्षी
अपनी-अपनी आकाश को छू लेने जैसी उड़ान भरते दिखाई देगें , हम कहीं भी देखें हमें
कुदरत का कोई न कोई नज़ारा जरूर दिखाई देगा , और अगर हम शान्त भाव से एक दम
एकान्त स्थान पर बैठ कर सोचें कि क्या यह सब परमात्मा ने अपने लिए बनायें हैं, या
परमात्मा ने अपना गर्व दिखाने के लिए बनायें हैं, या हम इस प्रकार समझेँ कि परमात्मा हमें
अपने आप को बहुत बड़ा जादूगर बन कर दिखाना चाहता है, अरे परमात्मा क्या है,यह स्वयं
परमात्मा को किसी को भी बताने की जरूरत नहीं है, परमात्मा एक खुली किताब की तरह
है, जिस का अस्तित्व कण -कण में नज़र आता है, जरूरत है तो बस उसे महसूस करने की ।
जिसने हम इंसानों के लिए चारों ओर अपने दिव्य संकल्प मात्र से हमें अपनी कुदरत के
ख़ज़ानों और नज़ारों से मालामाल किया हुआ है ,और वो चाहता है कि मेरे यह बच्चे सदा
खुशहाल और मर्यादित रहें और कुदरत की सम्पदाओं व् नज़ारों की रक्षा और बढ़ोतरी करने
में कुदरत का साथ दें , और कुदरत जैसे बिना भेदभाब के सब की रक्षा करती है ,सब का
पालन -पोषण ऎसे ही परमात्मा भी यही चाहता है ,कि मेरे द्वारा बनाये गये इन्सान भी
मेरी कुदरत की तरह आपस में बिना भेदभाव के रहें,और एक दूसरे की उन्नति में एक
दुसरे का साथ दें , और जब दुनिआबी दौड़ -धूप से अशान्त हों तो मेरी कुदरत की गोद में
आ कर शान्ति -प्रसन्ता और दिव्य ऊर्जा को महसूस करें और जीवन के पथ पर निर्विघ्नता से
आगे बढ़ते रहें ।
और सच कहें तो वास्तव में आज के इन्सान के लिए आज के
इस अशान्त वातावरण में शान्त रहने के लिए उस परमातमा की कुदरत की गोद से बढ़ कर
और किसी भी तरह का दूसरा कोई और साधन नहीं था, नहीं है और न ही आने वाले युग
-युगांतरों में होगा ।
आज विडम्ब्ना यह हुई कि जिन -जिन कुदरत के रास्तों पर चल
कर इन्सान शान्त भाव को और वास्तविक उन्नति को पा सकता था , उसी इन्सान ने अपने
ही हाथोँ कुदरत के सारे रास्तों को तहस -नहस कर अशान्ति के रास्तों पर अग्रसर होना
आरम्भ कर दिया, और इस इन्सान ने तनिक पीछे मुढ़ कर देखा और सोचा तक नहीं
कि परमात्मा ने यह सारी कुदरत सारी सृष्टि की मानव -जाति के बहुमुखी विकास और खुश
-हालि के लिए ही बनाई है उस में उस का अपना कोई भी स्वार्थ नहीं । पर आज हम खुद
-गर्ज इन्सान इस तथ्य को समझ ही नहीं रहें हैं ,और दिन व् दिन कुदरत को बर्बाद कर
रहें हैं , उसी के फलस्वरुप खुद भी दिन व् दिन बर्बाद और अशान्त हो रहें हैं । अगर आज
भी हम अपनी गलती का अहसास कर लेँ और आने वाले समय में अपनी प्रकृति माँ की
धरोहर [सम्पदा] की देखभाल के लिए सच्चे दिल से दिव्य सत्य संकल्प कर लें कि बस अब
हम अपनी प्रकृति माँ की रक्षा में किसी भी तरह की कोई भी भूल -चूक नहीं करेंगे ,तो
फिर यह बात भी दावे और हर्ष से कही जा सकती है ,कि ऐसा करने के बाद सारी दुनिया
में फिर कोई भी इन्सान अशान्त -निर्बल और असंतुष्ट दिखाई नहीं देगा । । ।
{नोट :-आओ हम सभी मिल के प्रकृति माँ की देखभाल के लिए यज्ञ -कर्म करें' इस प्रकार अपने हितैषी आप बनेँ }
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