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Monday, March 2, 2015

जीवन की सार्थकता

सड़क पर बहुत भीड़ जमा थी,तनिक रुक कर देखा की कोई 
मज़दूर किसी बिल्डिंग पर काम करते वक़्त अचानक नीचे 
आ गिरा था,और खून से लथ पथ सुन्न सा पड़ा था ,की 
कोई एक बोला की बेचारा चल बसा है,और यह बात सुनते 
ही सब भीड़ इधर-उधर बिखरने लगी,और तब दिखा की एक 
औरत और एक छे -सात साल का बच्चा बिलख-बिलख कर  
रो रहे थे लेकिन एक परमात्मा के सिवाए उनको चुप करवाने 
वाला कोई नहीं था,औरत आँखों मे लाचारी के आँसू लिए
सहायता के लिये पुकार रही थी और जिस -जिस की नज़र 
उधर पड़ती थी वो सब आँखों में बेदर्द सी नज़र लिए वहां से
खिसकते नज़र आ रहे थे ,की अचानक एक पतला-दुबला सा 
चलने में भी लाचार सा भिखारी उस मरे पड़े इंसान को देख 
वहीं रुक गया और औरत और बच्चे की लाचार हालत को 
देख कर सहज ही उस की आँखों से इंसानियत के आंसू बह 
निकले और वो सोचने लगा की मैंने जो आज भीख मांग 
कर पैसे इक्क्ठे किये हैं वो मैंने अपने इस शरीर को जिन्दा 
रखने के लिये किये हैं लेकिन आज इस बेरहम दुनिया में 
जिन्दा रहने में इतनी सार्थकता नहीं बल्कि एक बेसहारा 
को सहारा देने में ही हमारे जीवन की सार्थकता है,और फिर 
उस भिखारी ने अपनी मैली सी चादर अपने शरीर से उतार 
कर मृतक को ढक दिया और अपनी मांगी हुई भीख की 
पोटली उस औरत के हाथों में थमा दी और अपनी आँखों 
में गंगा-यमुना जैसे पवित्र  आँसू लिए आगे बढ़ गया----। 

 { आज की दुनिया में इंसानो की कमी नहीं इंसानीयत की कमी है  कृपया इंसानियत   

  का दामन थामिये--------धन्यवाद } 



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