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Monday, December 8, 2014

LETS LITTLE THINK {आओ जरा सोचेँ }

        





                                                        आओ  ज़रा सोचें 


 कोई  भी  कार्य  करते  समय  हर कोई  अपने  फायदे  के  लिए  जरूर  सोचता  है ,और  यह  घर  परिवार 

चलाने  के  लिए  ज़रूरी  भी  है ,लेकिन  हमें  इस  बात  का भी  ध्यान  रखना  भी  बहुत  जरूरी  है  की  कहीं  

हमारे फायदे  के  कार्य  के  साथ  किसी  दूसरे  का  शोषण  अथवा  नुक्सान  तो  नहीं  हो  रहा  है !!!
                                              






                                                                         आओ  ज़रा सोचें


कोई  भी  नया कार्य  शुरू  करने  से पहले   अपने  माँ-बाप  के  आशीर्वाद  लेने  मत  भूलें  क्योंकि  उनके 

 आशीर्वाद से  जो  कार्य  पूरा  नहीं  भी  होने  वाला  होगा ,वो भी  पूरा  हुए  बिना  नहीं  रहेगा ,क्योकि  की 

वो हमें  जन्म  देने  वाले  इस  धरती  पर साक्षात   भगवान  तुल्य  नहीं  अपितु  साक्षात  भगवन ही होते हैं । 
  





























































         

Saturday, December 6, 2014

save self good habits

एक बात अक्सर कही जाती  है की बचाव में ही बचाव है, पर यह बात कभी नहीं की जाती आओ अपनी अच्छी

अच्छी आदतों पर ध्यान दें, क्योंकि जब तक हम अपनी अच्छी आदतों पर ध्यान नहीं करते,तब तक हमारे से

किसी भी तरह का बचाव हो सके ऐसा सम्भव ही नहीं हो सकता,क्योंकि जब भी कोई अनहोनी होती है,उसका

एक ही कारण होता है, और वो है हमारी जरा सी  अथवा बड़ी  लापरवाही, जिस पर हम जाने अनजाने ध्यान

नहीं देते। जब हम बात करते है की यह सारी दुनिया परमात्मा ने बनाई है,तो  उसी प्रकार हमें इस बात पर

भी ध्यान ज़रूर देना चाहिऐ कि यह सारी भौतिक दुनिया के क़ायदे कानून भी स्वयं हमारे द्वारा अथवा

अन्य दूसरे इंसानों द्वारा ही बनाए हुए होते हैं,और इन कायदे कानूनों को बनाने का बस एक ही कारण होता

है,कि हम सब इंसान इन कायदों कानूनों द्वारा सुऱक्षित रह सकें। लेकिन जब तक हम इन कायदों कानूनों '

पूरा-पूरा लाभ लेने के लिये अपने भीतर सुरक्षित और अच्छी आदतों को स्थान नहीं देते, अथवा

उनका पालन नहीं करते,तब हम यह बात करें अथवा हमारे हर तरफ़ यह लिखा-लिखा कर रखें कि बचाव में

ही बचाव है,तो उस वक़्त हमारा सब कुछ पढ़ा लिखा व्यर्थ साबित हो जाता है।

perhaps we also.......................!

  आज हम अपने व्यस्त जीवन की दौड़ धूप में इतने ज्यादा खो चुके हैं कि  हम अक्सर अपने जीवन के

इर्दगिर्द क्या क्या हो रहा है अथवा क्या क्या होनाचाहिए  इस बात पर बात ध्यान हि नहीं दे पाते । लेकिन

हम कितने भी व्यस्त क्यों न हों हमें तनिक शान्त बैठ कर इस बात पर ध्यान ज़रूर देना  चाहिए कि हम भी

इस सारी दुनिया,देश,शहर,समाज ओर अपने  अपने छोटे  छोटे परिवार के साथ जुड़े हुए हैँ,ओर हमारा इन

सब के जुड़े हुए होने के कारण हमारा भी कर्त्तव्य हो जाता है कि हम भी अपनी भाग दौड की दुनिया से थोङा

सा समय निकालें ओर अपने आस पास क्या क्या हो रहा है उस पर भी ध्यान दें । इस बात का यह अर्थ नहीं

कि सब कुछ हमारे कारण हि हो रहा है अगर हम ध्यान नहीं देँगे तो सारी दुनिया ठहर जायेगी ऎसा कभी

नहीं हुआ ना हो रहा है ओर ना हि होगा । बात जरा यह सोचने की है कि कहीं हम स्वार्थी भाव में तो नहीं जी

रहें हैं कि बस अब हमें  किसी कि कोई ज़रूरत नहीं है,अगर हम ऐसा सोचते हैं तो हम भारी गल्ती  कर रहें हैं ,

हमें यह बात कभी नहीं भूलनी  चाहिए कि हम  भी इस पूरी दुनिया ,देश ,शहर,समाज़ ओर अपने परिवार का

ही हिस्सा हैं ,ओर उसी के नाते हमें भी यह ज़रूर सोचना अथवा महसूस'करना  चाहिए कि कहीं किसी को

मेरी अथवा मेरी किसी भी तरह की सेवा कि किसी को आवश्यकता तो नहीं है',अगर हो तो हमें ज़रा सा

समय निकाल कर किसी के काम  जरूर आना  चाहिए । ओर हमें इस बात को ज़रा ध्यान से सोचना  चाहिए

कि यह सारी प्रकृति हर तरहं से किसी दुसरे को देने के भाव में ही टिकी हुई है ,तो मेरे भाई हम क्यों प्रकृति

भाव को छोड़ कर स्वार्थी भाव में जीयें, अगर आज का हर इंसान अगर इसी भाव को अपने मन में बिठा कर

निःस्वार्थी भाव से जीया हुआ होता तो आज शायद हम भी सभी अपना मस्तक गर्व से उठा कर यह कह सकते

कि हाँ हम सभी ने किसी न किसी के लिये कुछ न कुछ दिल से किया। …दिल से किया। …… दिल से किया।

माँ (MOTHER)

   माँ  शब्द  जब भी किसी के भी दिल से निकलता है तो उस वक़्त  उस दिल में ममता का कैसा झरना फूट

पड़ता  है ,वो सिर्फ माँ  या  फिर वो जीव' ही बता  सकता  है ,जिसके दिल से माँ शब्द  निकलता है । अरे  हमारे

 द्बारा  सिर्फ  माँ  शब्द  के उच्चारण  मात्र से  हमारे भीतर  एक  बिजली  की चमक की तरह ममता की लहर

 दौड़ जाती  है ,पर  जब माँ  अपने  बच्चे  को  प्यार  से दिल  से पुकारती  है ,तो उस वक़्त बच्चे  को माँ से बिन

 मांगे  ही  कैसे  कैसे  आशीर्वाद  प्राप्त  होते है ,वो सिर्फ माँ  का दिल ही जानता है , इस लिए हमें माँ के दिल को

भूल कर  भी नहीं दुखाना चाहिए,क्योंकि जब हम माँ के दिल को दुखाते तब हम यह सोचेँ की हमें कोई फ़र्क़ नहीं

पड़ता  या  हम  अब  बड़े हो  चुके हैं,हम जो भी करें  तो उसवक़्त हम बहुत बड़ी  गलती कर  रहें  होते  हैं ,जिसका
अहसास  हमें जिन्दगी  में कभी  न  कभी  अवश्य होता  है ,और उस  वक़्त  हमारे  हाथ  पश्ताने  के  इलावा

और कोई  रास्ता  नहीं  होता,यह  कई  लोगों का  अनुभव  होगा कि जिन -जिन  परिवारों  में  माँ  का  आदर

 सत्कार  नहीं  होता  अथवा  माँ  को  रुलाया  जाता  है ,उस  परिवार  में  कभी  भी  सुख  शांति  नहीं  रहती ,

क्योंकि  जब माँ  रोती  है ,तब  उसके  आँसुओं  में  सब  कुछ  तिनके की   तरह  बह  जाता  है।  क्योंकि  माँ  ही

प्रकृति  का  साक्षात्  रूप होती  है ,और  जब  प्रकृति  माँ  प्रसन्न  होती है ,तब  कण -कण  में  हरियाली  ही

हरियाली  नज़र  आती है  और  जब  प्रकृति  माँ  हमारी  ग़लतियों  के  कारण  अथवा  अनदेखी  के कारण

रोती  है  या  अत्यन्त  दुखी  होती  है ,तब उसके  आँसुओं  के  सैलाव  में  हर  कोई  तहस -नहस  हो जाता  है ।

जब  माँ  का  हिर्दय  खुश  होता  है  अथवा  जब-जब  माँ  हँसती  है ,उस  वक़्त  सारी  सृष्टि  उसके आँचल  में

समा जाती  है ।  माँ  बच्चों  से  हज़ारों मील दूर  क्यों  न हो फिर भी  वो  अपने  बच्चों  के  दुःख -दर्द  को  कोसों

दूर  से  महसूस कर  लेती  है  और  दूर  से  ही  अपने आशिर्वाद  और  दुयाओं   से अपने  बच्चों  की झोली  भर

देती है।  क्योकि  माँ   से सारी  सृष्टि  की  उत्पति  हुई  है  तो  उस माँ  के लिए  बच्चों  की  दूरियाँ  और

नज़दीकियों  की  अटकलें  कहाँ  रह  जाती  हैं ।

                                             हमें   भी माँ' के  प्रति  हमेशा सेवा भावना  और  दिल की गहराईयों  से प्रेम

करना चाहीए।  यह  हमारा  केवल मात्र  कर्तव्य  बल्कि  हमारा  परम्  धरम  होना  चाहीए ,अरे  माँ  हमारी  दो

रोटी  की भूखी  नहीं  होती बल्कि  वो  अपनी  संतान  की  ह्र्दय से प्रेम भावना  की ,आदर -सम्मान की  और

हमारी  प्रेम भरी  नज़रों  की  प्यासी  होती  है, और  माँ  की  इस  प्रकार  की  माँग  बच्चे  अमीर  हो  या  गरीब

हर  कोई   पूरा  कर सकते  है  और  कोई  भी  माँ  अपने  बच्चों  से  इस ज़्यादा  कुछ  भी नहीं  चाहती  और  जो

वो  हमें  देती  है  वो  है  अपनी  कोख  से  जन्म  जो  सारी  सृष्टि  के भगवान्   भी  ऐसा  नहीं  कर सकते

क्योंकि  भगवान्  जी  को  भी  इस  धरती  माँ  पर  जन्म  लेने  के लिए  माँ  की  कोख से  जन्म  लेना  पड़ता

है ।  इस लिए  हमें  यहाँ  एक अंतिम  बात  यह  कर  के  माँ  के  ममतामई  प्रसंग  को यहीं  विराम  दे  देना

चाहीए ,क्योंकि   माँ  शब्द  की  व्याख़्या  करना  ही  नामुम्किन  विषय  है ,जैसे  हम  यूूँ  कह  सकते  है  की

सूर्य  को  दीपक  दिखाना  अथवा  सागर  को  गागर  में  भरने  जैसा  ही  है -----------------------धन्यवाद ।


{ जरूरी  प्राथर्ना :- माँ  जो  बचपन  से  लेकर  बुढापे  तक  हमारी  प्रेरणा  स्रोत्र  ,शुभचिंतक  और  प्रेम सरिता 
                           सामान होती  है  उस  माँ  की आँखोँ  से  कभी  भी  एक  भी  आसूँ  को  न  बहने  दें  यहाँ   
                           तक  हो  सके  माँ  को हर  तरह  से तृप्त  रखें ,और कभी भी ऐसा  न हो  की जब  माँ को  
                           हमारी ज़रूरत  हो  और माँ  को  हमें  पुकारना  पड़े  ,हे  दुनिया  के  इंसानो  अपने  -अपने 
                           परिवारों  में ऐसी  ही  पवित्र  भावना   को जाग्रत करें  जाग्रत  करें जाग्रत  करें ----------!!!


    < इंसान  चाहे  सौ सौ  जन्म ले  ले  पर  माँ  के  दूध  का  क़र्ज़  चुकाना  उस के वश  की बात  नहीं है-नहीं है >

Wednesday, September 24, 2014

वचाव में वचाव !!!

वचाव  में  वचाव !!!





एक बात अक्सर कही जाती  है की बचाव में ही बचाव है, पर यह बात कभी नहीं की जाती आओ अपनी अच्छी

अच्छी आदतों पर ध्यान दें, क्योंकि जब तक हम अपनी अच्छी आदतों पर ध्यान नहीं करते,तब तक हमारे से

किसी भी तरह का बचाव हो सके ऐसा सम्भव ही नहीं हो सकता,क्योंकि जब भी कोई अनहोनी होती है,उसका

एक ही कारण होता है, और वो है हमारी जरा सी  अथवा बड़ी  लापरवाही, जिस पर हम जाने अनजाने ध्यान

नहीं देते। जब हम बात करते है की यह सारी दुनिया परमात्मा ने बनाई है,तो  उसी प्रकार हमें इस बात पर

भी ध्यान ज़रूर देना चाहिऐ कि यह सारी भौतिक दुनिया के क़ायदे कानून भी स्वयं हमारे द्वारा अथवा

अन्य दूसरे इंसानों द्वारा ही बनाए हुए होते हैं,और इन कायदे कानूनों को बनाने का बस एक ही कारण होता

है,कि हम सब इंसान इन कायदों कानूनों द्वारा सुऱक्षित रह सकें। लेकिन जब तक हम इन कायदों कानूनों '

पूरा-पूरा लाभ लेने के लिये अपने भीतर सुरक्षित और अच्छी आदतों को स्थान नहीं देते, अथवा

उनका पालन नहीं करते,तब हम यह बात करें अथवा हमारे हर तरफ़ यह लिखा-लिखा कर रखें कि बचाव में

ही बचाव है,तो उस वक़्त हमारा सब कुछ पढ़ा लिखा व्यर्थ साबित हो जाता है।

live like nature

यह कैसी है कुदरत कहे सब कुछ बिना ही कहे , 
                                            कुदरत ले  लेती है करवट बिना कुछ  कहे !

हवाएं भी हैं चलती  बिना कुछ  कहे , 
                                                 मेघ सब पर हैं बरसें भेद बिना ही किये !!

सूर्य चमके है जग में वो भी सब के लिए ,
                                        नदियां कल -कल  बहती हैं जाती सब  लिए! 

पेड़ देतें हैं छाया भेद बिना कुछ किए, 
                                                धरती  देती है सब कुछ बिना कुछ लिए!! 

कुदरत करती  है इशारा  जियो  सब के  लिए, 
                                                बनो  कुदरत  के  जैसे जियो सब के लिए !

भगवान बसते  हैं सब  में  वो  भी  सब  के  लिये, 
                                           बनो  भगवान  तुम भी जियो सब के  लिए  !!

सरहदों से उठो तुम आसमां में जियो, 
                                            उड़ो तुम भी  गगन  में  बिना  पंख  लिये  !  

यह विडंबना  है कैसी  मर  रहा  हर  कोई, 
                                          आज सिर्फ अपने लिए-सिर्फ अपने  लिए !!         
आओ  सभी मिलजुल  कर्म  करें  ऐसे, 
                                          जियें  सब  के  लिए - जियें  सब  के  लिए !

मिटे  भेदभाव  सारे  रहें  सब  मिलजुल  कर, 
                                  फिर दिल  से  यह  निकले  गाएं सभी मिल कर !!

नहीं  हम  किसी एक ही वतन  के,  
                                        यह सारा  जहाँ  हमारा-यह सारा जहाँ  हमारा !

सब  को  गले  लगाएं  गाएं सभी मिल  कर,
                                                               यह  सारा यहांँ  हमारा-यह सारा यहाँ हमारा !!

{प्राथर्ना  सभी से :-जो  आप  सभी  ऊपर  गा  चुके  हैं  कृप्या उसी  भाव  से  उसी  प्रण  अपने  घर  के  भीतर -
 और घर  से बाहर  प्यार  भरा  माहौल  बनाइये  और सब के लिए जियें  अगर  ऐसा  हो जाता  है फिर  हम  गर्व  से कह  सकते  हैं कि  हम  सभी दुनिया के नागरिक हैं न की एक देश के  क्यों  की आज  एकदेशीता  सब सब     प्रकार  के  मूल  झगड़ों का कारण  है -धन्यवाद }                                    
                                            

anmol

जीवन मेँ अनमोल वो नहीं होता  कि  जो बहुत  कीमती 

होता  है,बल्कि  वो ज्यादा  अनमोल  होता  है,कि  जब 

किसी  को  भी कोई  बहुत  सख़्त  जरूरत  हो तो उस 

वक़्त  उस  के  कोई  काम  आए तो  उस वक़्त  की  

कि  गई  सहायता अनमोल  हो  जाती  है  फिर  वो   

सहायता  चाहे किसी  भी  तरह  की  क्यों  न  हो !